Vat savitri vrat 2025: भारतीय संस्कृति में व्रतों और त्योहारों का विशेष महत्व है। ये न केवल धार्मिक आस्था से जुड़े होते हैं, बल्कि पारिवारिक संबंधों को भी मजबूत बनाते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण व्रत है वट सावित्री व्रत, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और पारिवारिक कल्याण के लिए करती हैं। यह व्रत भारतीय नारी के संकल्प, प्रेम, त्याग और निष्ठा का प्रतीक है।
वट सावित्री व्रत का महत्त्व
वट सावित्री व्रत का संबंध सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से है। इस दिन महिलाएं वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं क्योंकि यह दीर्घायु, संतान सुख और सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। सावित्री की भक्ति और बुद्धिमत्ता से मृत्यु के देवता यमराज को भी झुकना पड़ा था, और उसने सत्यवान को जीवनदान दे दिया। यही कारण है कि इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।

व्रत की तिथि और समय
वट सावित्री व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। उत्तर भारत में यह ज्येष्ठ अमावस्या को और कुछ क्षेत्रों में (जैसे महाराष्ट्र और दक्षिण भारत) ज्येष्ठ पूर्णिमा को भी मनाया जाता है। इस दिन का धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी विशेष महत्व है।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
1. प्रात:काल स्नान और संकल्प
- सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें।
- साफ साड़ी पहनें और सोलह श्रृंगार करें।
- एक लकड़ी की चौकी पर वट वृक्ष का चित्र या मूर्ति रखें, या वास्तविक बरगद के पेड़ के नीचे जाकर पूजा करें।
- व्रत का संकल्प लें कि आप पूरे दिन उपवास रखेंगी और विधिपूर्वक पूजा करेंगी।
2. पूजन सामग्री
- कच्चा दूध, जल, रोली, चावल, मौली, सुपारी, पान, अगरबत्ती, दीपक, फल, मिठाई
- बांस की बनी पूजा की टोकरी में सुहाग सामग्री (कंघी, चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, आदि)
- वट वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाना और धागा लपेटना
3. वट वृक्ष की पूजा
- वट वृक्ष की जड़ों में जल, दूध और चावल अर्पित करें।
- मौली का धागा पेड़ की परिक्रमा करते हुए सात बार लपेटें।
- इसके बाद व्रत कथा सुनी या पढ़ी जाती है।
वट सावित्री व्रत की कथा
बहुत समय पहले राजा अश्वपत की पुत्री सावित्री अत्यंत रूपवती और बुद्धिमान थी। उसने स्वयंवर में एक तपस्वी युवक सत्यवान को वर के रूप में चुना, जो जंगल में अपने अंधे माता-पिता के साथ रहता था। परंतु नारद मुनि ने सावित्री को चेताया कि सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष शेष है।
फिर भी सावित्री ने अटल निष्ठा से सत्यवान से विवाह किया। विवाह के बाद वह प्रतिदिन उपवास और पूजा करती रही। एक दिन जब सत्यवान जंगल में लकड़ियां काट रहा था, तभी उसे चक्कर आने लगे और वह सावित्री की गोद में गिर गया। तभी यमराज उसकी आत्मा को ले जाने आए। सावित्री ने यमराज का पीछा किया और अपने धर्म, भक्ति और बुद्धिमत्ता से उन्हें प्रसन्न कर लिया। यमराज ने प्रसन्न होकर सत्यवान को पुनः जीवनदान दिया।

इस व्रत के पीछे की आस्था और भावनाएं
यह व्रत नारी के समर्पण, प्रेम और शक्ति का उदाहरण है। यह बताता है कि नारी केवल सहनशील नहीं होती, बल्कि उसमें संघर्ष करके नियति को भी बदलने की शक्ति होती है। सावित्री ने दिखाया कि सच्ची भक्ति, दृढ़ संकल्प और प्रेम से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
व्रत करने के लाभ
- पति की लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य
- सुखी वैवाहिक जीवन
- संतान सुख की प्राप्ति
- घर में सौभाग्य और समृद्धि का वास
- आध्यात्मिक उन्नति और आत्मबल में वृद्धि
वट वृक्ष का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व
बरगद का पेड़ न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी लाभकारी है। यह 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है और पर्यावरण को शुद्ध करता है। आयुर्वेद में इसकी जड़ों, पत्तों और दूध (रस) से कई रोगों का इलाज किया जाता है।
आध्यात्मिक रूप से यह वृक्ष त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। इसकी पूजा से मानसिक शांति, शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
समापन
वट सावित्री व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नारी शक्ति, प्रेम और आत्मबल का प्रतीक है। यह व्रत हर उस स्त्री के लिए प्रेरणा है जो अपने परिवार और पति के लिए अडिग प्रेम और त्याग की भावना रखती है। सावित्री की तरह नारी भी आज के युग में हर चुनौती का सामना अपने विश्वास और आत्मबल से कर सकती है।