Shardiya Navratri 2024: 3 अक्टूबर से शुरू हो रहे है। नवरात्री के इस पावन पर्व पर माँ के नौ रूपों की पूजा होती है। आइये जानते है माँ के 9 रूपों का महत्व, कलश स्थापना, मुहूर्त और पूजा विधि।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त –
शारदीय नवरात्रि 2024 का कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 07 मिनट से 09 बजकर 30 मिनट तक है। अगर इस मुहूर्त में कलश स्थापित न हो पाए तो अभिजीत मुहूर्त में सुबह 11 बजकर 37 मिनट 12 बजकर 23 मिनट तक कलश स्थापित कर सकते है सकते है। जिस दिन माँ का आगमन होता है, उस दिन ही घट या कलश स्थापित करते है।
कलश स्थापना की सामग्री–
नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। कलश स्थापना लिए मिटटी का छोटा घड़ा यदि मिटटी का घड़ा न हो तो अन्य धातु का भी घड़ा ले सकते है। रोली, अक्षत, कलावा, जौ, पान का पत्ता, मिट्टी, आम के पत्ते, सुपारी, नारियल, फूल इत्यादि सामग्री एकत्र करे।
कलश स्थापना की विधि-
कलश स्थापना में माता की चौकी लगाए। चौकी के समीप मिट्टी रखे, मिटटी पर जल छिड़क कर उसको गीला करे। मिट्टी में जौ के दाने डाले। मिट्टी पर जल भरा हुआ कलश रखे अगर गंगा जल हो तो पात्र में गंगाजल भरे। कलश के मुख पर कलावा बांधे और उसके ऊपर आम के पत्ते से सजा कर कलश के मुख पर नारियल में कलावा लपेट कर सीधा रखें। कलश पर रोली से स्वस्तिक बनाये। मंत्रो उच्चारण के साथ कलश स्थापना करें। कलश के सामने 9 दिनों तक अखंड ज्योत जलाये। नौ दिनों तक प्रतिदिन ज्वारे में जल छिड़के। कलश स्थापना को सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।
माँ के नौ रूपों का महत्व–
नवरात्रि में माँ पार्वती के नौ रूपों की पूजा होती है। माँ के हर एक स्वरूप का अलग- अलग महत्व है।
- माँ शैलपुत्री- शैलपुत्री का अर्थ है पर्वत की बेटी अथार्थ माँ पार्वती ने हिमालय के जन्म लिया था। इसलिए वो शैलपुत्री कहलाईं। माँ शैलपुत्री सौम्य, शक्ति और स्थिरता की प्रतीक है। इस रूप के दर्शन और ध्यान से सभी परेशानियां दूर होती है और जीवन में शांति और स्थिरता आती है।
- माँ ब्रह्मचारिणी- माँ ब्रह्मचारिणी तप, साधना और समर्पण का प्रतीक है। माँ ब्रह्मचारिणी के ध्यान करने से कार्य में एकाग्रता, धैर्य बढ़ता है।
- माँ चंद्रघंटा- माँ का यह रूप युद्ध को दर्शाता है। माँ का यह स्वरूप बुराई पर अच्छाई को दर्शाता है और विजय, साहस का प्रतीक है।
- माँ कूष्माण्डा- माँ कुष्मांडा का यह स्वरूप सृष्टि के रचयिता को दर्शाता है। वह सृष्टि का पालन- पोषण करती है और सुख समृद्धि प्रदान करती है।
- माँ स्कंदमाता- माँ का यह स्वरूप ममतामयी माँ का है। जिनकी गोद में भगवान स्कंद अथार्थ कार्तिकेय है। यह रूप प्रेम और मातृत्व का प्रतीक है। स्कंदमाता बच्चों और परिवार की रक्षा करती है।
- माँ कात्यायनी- मां कात्यायनी अस्त्र और शस्त्र से सुशोभित है। वह महिषासुर का वध करती है। माँ का यह स्वरूप साहस और बुराई को मिटाने का प्रतीक है।
- माँ कालरात्रि- माँ का यह रूप बहुत विकराल है। इस रूप भय और काल दोनों का नाश करता है अथार्थ भक्तों को नकारात्मकता से मुक्त करता है। माँ काली को ही कालरात्रि कहा गया है।
- माँ महागौरी- यह रूप माँ का बहुत सौम्य और शांत है। यह रूप मानसिक शांति और पवित्रता का प्रतीक है। यह रूप के दर्शन करके भक्तों को मन की शांति और संतोष प्राप्त होता है।
- माँ सिद्धिदात्री- यह माँ का अंतिम स्वरूप है। माँ का यह रूप सभी सिद्धियों की प्राप्ति के लिए है। माँ सिद्धिदात्री का ध्यान और पूजन करने से जीवन में सफलता और मोक्ष प्राप्त होता है।
नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए और महिषासुर मर्दिनी स्रोर्त सुनना और पढ़ना चाहिए।