Achla Ekadasi 2025: अचला एकादशी व्रत कथा, विधि, महत्त्व और लाभ हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। प्रत्येक मास में दो एकादशी आती है – शुक्ल पक्ष की एकादशी और कृष्ण पक्ष की एकादशी। इनमें से ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी या अपरा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी पापनाशिनी मानी जाती है और इसका व्रत रखने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
अचला एकादशी का महत्व
अचला एकादशी को धर्म, मोक्ष और पुण्य प्रदान करने वाली एकादशी कहा गया है। पुराणों के अनुसार, इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति अनेक तीर्थों के स्नान, दान और यज्ञ करने के फल के समान पुण्य प्राप्त करता है। इसका व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी होता है जो जीवन में पापों से मुक्ति पाना चाहते हैं।

शास्त्रों में वर्णित लाभ:
- पितरों की आत्मा को शांति मिलती है
- पुराने कर्मों से छुटकारा मिलता है
- मानसिक शांति और आत्मिक बल प्राप्त होता है
- मोक्ष मार्ग की प्राप्ति होती है
अचला एकादशी की पौराणिक कथा
पद्म पुराण में अचला एकादशी की कथा वर्णित है।
एक समय की बात है, महिष्मति नगर में महासुर नामक एक क्रूर राजा राज्य करता था। वह अत्यंत पापी, निर्दयी और धर्म विरोधी था। उसके कर्मों से जनता त्रस्त हो गई थी। एक दिन वह किसी साधु से अपरा एकादशी व्रत की महिमा सुनता है। साधु कहते हैं कि इस व्रत को करने से बड़े-बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
राजा को आत्मबोध होता है और वह अपने सारे पापों के लिए क्षमा याचना करता है। फिर वह पूरे विधिपूर्वक अचला एकादशी का व्रत रखता है। उस व्रत के प्रभाव से न केवल उसके पाप नष्ट हो जाते हैं बल्कि मरने के बाद वह विष्णु लोक को प्राप्त करता है।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से अपने अपराधों का प्रायश्चित करे और नियमपूर्वक एकादशी का व्रत करे तो उसे भी मोक्ष की प्राप्ति संभव है।

व्रत विधि
अचला एकादशी व्रत की प्रक्रिया निम्नलिखित है:
- दशमी तिथि से प्रारंभ:
व्रती को दशमी के दिन संध्याकाल के बाद सात्विक भोजन करना चाहिए और अगले दिन उपवास का संकल्प लेना चाहिए। - प्रातःकाल उठकर स्नान करें:
पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है। यदि संभव न हो तो घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। - व्रत का संकल्प लें:
“मैं भगवान विष्णु की कृपा से अचला एकादशी का व्रत कर रहा/रही हूँ, कृपया मुझे शक्ति और आशीर्वाद दें।” - पूजन विधि:
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान करके पीले वस्त्र पहनाएं।
- चंदन, फूल, तुलसीदल, दीप और धूप से पूजा करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- कथा श्रवण और भजन-कीर्तन करें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान करके पीले वस्त्र पहनाएं।
- उपवास:
- निर्जला व्रत श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन जल या फलाहार लेकर भी व्रत किया जा सकता है।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें और किसी से कटु वचन न बोलें।
- निर्जला व्रत श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन जल या फलाहार लेकर भी व्रत किया जा सकता है।
- एकादशी रात्रि जागरण:
- रातभर जागरण करके भजन-कीर्तन करें। यह विशेष फलदायी होता है।
- रातभर जागरण करके भजन-कीर्तन करें। यह विशेष फलदायी होता है।
- द्वादशी को पारण:
- अगले दिन सूर्योदय के बाद और दोपहर से पहले पारण करें।
- ब्राह्मण या गरीबों को भोजन कराएं, दान दें, फिर स्वयं अन्न ग्रहण करें।
- अगले दिन सूर्योदय के बाद और दोपहर से पहले पारण करें।
व्रत के लाभ
- व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति आती है
- घर में समृद्धि का वास होता है
- मानसिक तनाव और दोष दूर होते हैं
- पितृदोष और पूर्वजों के कष्टों से मुक्ति मिलती है
- जन्म-जन्मांतर के पाप समाप्त होते हैं

विशेष जानकारी
- अचला एकादशी को “अपरा एकादशी” इसलिए कहते हैं क्योंकि इसका पुण्य परिणाम (अपार) होता है।
- इस एकादशी को जो श्रद्धा से करता है, उसे गंगा-स्नान, काशी-यात्रा, सूर्यग्रहण में दान आदि के बराबर फल मिलता है।
- जो व्यक्ति न्याय के क्षेत्र में हैं (जज, वकील आदि) उनके लिए यह व्रत विशेष फलदायी बताया गया है।
निष्कर्ष
अचला एकादशी का व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए, बल्कि मानसिक शांति, आत्मबल, और पापों से मुक्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। यह एकादशी हमें सिखाती है कि यदि हम सच्चे हृदय से भगवान की शरण में जाएं और अपने पापों के लिए क्षमा मांगें, तो भगवान हमें अवश्य क्षमा करते हैं और मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर करते हैं।